Friday, November 30, 2007

Void


जब मेरे पेपर चल रहे थे तब मुझे हमेशा ये ही लगता था की यार कब ख़तम हों ये, और कब मैं फ्री हो जाऊं। और अब जब पेपर पूरे हो गए हैं और छुट्टियां हो गयी हैं तो सच में ऐसा लग रहा है की यार इससे तो कल तक ही अच्छा था कम से कम हर समय कुछ करने के लिए तो होता था. Tension रहती थी लेकिन बोरियत तो नहीं होती थी. आज तो सारे दिन मैच ही देखता रहा. जफर सही खेल रहा था लेकिन फिर भी यार पूरा दिन, वो भी test match, इस T20 के ज़माने में, हद् हो गयी! और उसके बाद से यही सोच रहा हूँ अब क्या करून, कहाँ जाऊं, वगेरा वगेरा। इसी सोच में बैठे बैठे घर पे राखी हुई मिठाइयां भी सारी खा गया पता नहीं किस किस के शादी की नाम की अब ये post लिखने भी इसीलिए बैठा हूँ की भाई बाँदा कुछ तो करे. Exams से पहले तो घरवाले भी इतने काम बताते थे, अब उन्हें भी को काम वाम नहीं करवाना मुझसे, कमाल है.

ठण्ड तो काफी हो गयी वैसे इस बार, पर देख रहा हूँ कि कोई मूंगफली and all नहीं मंगवाई हुई घर पे, आज ही ले कर आऊंगा।

हॉस्टेल में रहते रहते शकल भी कौवे जैसी हो गयी है. कल रगड़ रगड़ के मैल उतारना पड़ेगा।

चलो भाई अब मूंगफली लेने जाता हूँ, आधा घंटा और time कटेगा।

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