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Friday, March 6, 2009

कल और आज

क्या कल सैलाब आया था या मौसम में मोहब्बत थी
कोई मुझको बता दीजे कि कल क्या मेरी हालत थी

मुझे अब याद ना आए, मेरी बद-हवासी का मंज़र
क्या मेरी जुस्तुजू में कोई जुर्रत, कुछ ज़लालत थी

के घंटो से टंगा हूँ फ़ोन की तारों पे मैं लेकिन
सुबह सिर्फ़ घंटियाँ, अब उसकी मम्मी की वकालत थी