वक्त इतना भी मेहरबान मुर्शिद तो नहीं है
करूं मैं एहतियात रोज़ ऐसी जिद तो नहीं है
नादां न वो बच्चा जो कहे वालिद हद-आलिम
हर सांच उभारी जाए, ज़रूरी तो नहीं है
हर ख़ता की तसल्ली कि भूल भी इक सबक है
हर सबक का यूँ सीखना वाजिब तो नहीं है
वस्ल को चला है जो राज़-ऐ-गुलशन की ले तलब
वो है तो कोई फलसफी ; समझदार नहीं है
करूं मैं एहतियात रोज़ ऐसी जिद तो नहीं है
नादां न वो बच्चा जो कहे वालिद हद-आलिम
हर सांच उभारी जाए, ज़रूरी तो नहीं है
हर ख़ता की तसल्ली कि भूल भी इक सबक है
हर सबक का यूँ सीखना वाजिब तो नहीं है
वस्ल को चला है जो राज़-ऐ-गुलशन की ले तलब
वो है तो कोई फलसफी ; समझदार नहीं है
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