Monday, May 4, 2020

अथ योगानुशासनम

पिछले कुछ सालों में कुछ बेहतरीन किताबें पढ़ने की खुशकिस्मती हुई, और उनकी बातों के बारे में बहुत अच्छे और दयालु स्वामी सर्वप्रियनंद से सीखने समझने को और चर्चा करने को मिला। आने वाले समय में जहां तक हो सके मैं आसान शब्दों में उन किताबों की बातों को फेसबुक के स्टेटस मैसेज पर लिखूंगा। जहां आसान शब्द संभव नहीं होगा, वहां अंग्रेजी शब्द जोड़ दूंगा। इन फेसबुक स्टेटस मेसेजस में अनुवाद भी होगा और उल्लेख भी।  श्लोक वाली किताबें, जैसे भगवदगीता, को कुछ हद तक सिर्फ अनुवाद से समझने की चेष्ठा की जा सकती है, परन्तु सूत्र वाली किताबें, जैसे बदारायण के ब्रह्मसूत्र या फिर पतंजलि के योगसूत्र, उन्हें केवल अनुवाद से समझना मुश्किल ही नहीं, हानिकारक भी है।  प्राचीन समय में सूत्रों का इस्तेमाल बहुत अधिक वर्णन को बहुत ही छोटे में कह देने के लिए होता था, सूत्र के हर शब्द में अपने आप में एक पूरी कहानी होती थी। अक्सर ये साधको के याद रखने की सहूलियत के लिहाज़ से अतिलघु (succinct) किये जाते थे, ताकि उन्हें कंठस्थ (memorize) हो पाएं, लेकिन उनसे ये अपेक्षा (expectation) ज़रूर की जाती थी कि हर शब्द के पीछे के वर्णन का अभ्यास उन्हें इतना हो की सूत्र के हर शब्द के स्मरण से उन्हें उस शब्द के पीछे की सारी बात याद आ जाए।  खैर, ये तो हुई सूत्रों और श्लोकों के फर्क की बात। अब जल्दी ही हम पतंजलि योगसूत्र से शुरुआत करेंगे।  यदि ये प्रयास सफल रहा तो आने वाले समय में भगवदगीता, विवेकचूड़ामणि, अपरोक्षानभूति और कुछ उपनिषदों तक भी पहुंचेंगे, देखते हैं।

#1 .1 "अथ योगानुशासनम"
हिंदी: "और अब, योग"
English: "And now, the discipline of Yoga"

अनुवाद के नाम पर तो इतना ही है। व्यास, शंकर और विज्ञानभिक्षु ने इस छोटे से सूत्र पर बहुत कुछ कहा है। खैर, किसी किताब की शुरुआत ही "और अब.." से कैसे हुई? यह पढ़कर तो ऐसा लगता है की किसी चली आ रही बात को जारी रखते हुए आगे बढ़ाया  जा रहा है। क्या इस सूत्र से पहले भी कुछ सूत्र थे इस किताब में जो कहीं खो गए?

दरअसल, पतंजलि ने ऐसी शुरुआत की आपको सोचने पर मजबूर करने के लिए।  जीवन में आपने बहुत सी योजनाएं बनायीं, घाट घाट का पानी पिया, बहुतों से परामर्श लिया। ज़रूर आपने ये सब किसी न किसी प्रकार की बेहतरी के लिए किये, परन्तु क्या आपको फिर भी लगा की कुछ छूट गया? आपने बहुत कुछ पाने की कोशिश की, शुरू में असफल रहे पर अपने संघर्षो से आपने अपने आप को समर्थ बनाया और आखिरकार अपने उद्देश्यों को प्राप्त भी कर लिया, लेकिन क्या उस सफलता के बाद आप संतुष्ट हो गए या आप को लगा की इस सब क्या क्या अर्थ था? आपने तरह तरह की जतन किये, तरह तरह की उपलब्धियां हासिल की की, तरह तरह की वस्तुएं प्राप्त की, तरह तरह की तारीफें बटोरी, तरह तरह की जगह देखी , खाना खाया, खेल खेले, तो अब और आखिर क्या? इसीलिए: "और अब, योग".

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